फलित ज्योतिष

कुंडली वह चक्र है, जिसके द्वारा किसी इष्ट काल में राशिचक्र की स्थिति का ज्ञान होता है। राशिचक्र क्रांतिचक्र से संबद्ध है, जिसकी स्थिति अक्षांशों की भिन्नता के कारण विभिन्न देशों में एक सी नहीं है। अतएव राशिचक्र की स्थिति जानने के लिये स्थानीय समय तथा अपने स्थान में होनेवाले राशियों के उदय की स्थिति (स्वोदय) का ज्ञान आवश्यक है। हमारी घड़ियाँ किसी एक निश्चित याम्योत्तर के मध्यम सूर्य के समय को बतलाती है। इससे सारणियों की, जो पंचागों में दी रहती हैं, सहायता से हमें स्थानीय स्पष्टकाल ज्ञात करना होता है। स्थानीय स्पष्टकाल को इष्टकाल कहते हैं। इष्टकाल में जो राशि पूर्व क्षितिज में होती है उसे लग्न कहते हैं। तात्कालिक स्पष्ट सूर्य के ज्ञान से एवं स्थानीय राशियों के उदयकाल के ज्ञान से लग्न जाना जाता है। इस प्रकार राशिचक्र की स्थिति ज्ञात हो जाती है। भारतीय प्रणाली में लग्न भी निरयण लिया जाता है। पाश्चात्य प्रणाली में लग्न सायन लिया जाता है।

इसके अतिरिक्त वे लोग राशिचक्र शिरोबिंदु (दशम लग्न) को भी ज्ञात करते हैं। भारतीय प्रणाली में लग्न जिस राशि में होता है उसे ऊपर की ओर लिखकर शेष राशियों को वामावर्त से लिख देते हैं। लग्न को प्रथम भाव तथा उसके बाद की राशि को दूसरे भाव इत्यादि के रूप में कल्पित करते हैं1 भावों की संख्या उनकी कुंडली में स्थिति से ज्ञात होती है। राशियों का अंकों द्वारा तथा ग्रहों को उनके आद्यक्षरों से व्यक्त कर देते हैं।

इस प्रकर का राशिचक्र कुंडली कहलाता है। भारतीय पद्धति में जो सात ग्रह माने जाते हैं, वे हैं सूर्य, चंद्र, मंगल आदि। इसके अतिरिक्त दो तमो ग्रह भी हैं, जिन्हें राहु तथा केतु कहते हैं। राहु को सदा क्रांतिवृत्त तथा चंद्रकक्षा के आरोहपात पर तथा केतु का अवरोहपात पर स्थित मानते हैं। ये जिस भाव, या जिस भाव के स्वामी, के साथ स्थित हों उनके अनुसार इनका फल बदल जाता है। स्वभावत: तमोग्रह होने के कारण इनका फल अशुभ होता है।

फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है, तथापि साधारण लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का अर्थ ही लेते हैं।

राशिफल (Zodiac Prediction)

राशिफल (Rashifal) या जन्म-कुंडली ज्योतिषीय घटनाओं पर आधारित एक चार्ट होता है जिसमें एक व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य की जानकारियाँ, खगोलीय घटनाओं के आधार पर दर्शायीं गयी होती हैं। इन्हीं खगोलिय पिंडों का अध्ययन कर,किसी व्यक्ति या किसी घटना के प्रभाव और दुष्प्रभावों को आंका जाता है। एक राशिफल को बनाते या देखते समय व्यक्ति के जन्म समय पर ग्रहों की स्थिति को देखना होता है जैसे कि चन्द्र कौनसी राशि में है एवं सूर्य ग्रह कहाँ है तथा अन्य ग्रहों की चाल क्या है। ब्रह्माण्ड में 9 ग्रह माने गये हैं- सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु। इसी तरह से 12 राशियाँ हैं।

एक जातक जिस समय और जगह, जन्म लेता है उसी से पहले राशि तय होती है और इन ग्रहों के आधार पर कुंडली का निर्माण किया जाता है। इसके पश्चात् ग्रह पूरे साल, अलग-अलग राशियों में अपनी जगह बदलते रहते हैं और इसका प्रभाव सही या गलत इंसान पर पड़ता है। जातक की राशि को आधार बनाकर, ज्योतिषाचार्य जीवन के हर पहलू और विभागों की जांच करते हैं और अगर किसी प्रकार की कोई परेशानी यहाँ होती है तो उसका हल बताते हैं। इसी का ही प्रयोग कर व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं व्यवहार का विश्लेषण किया जाता है। किसी की पसंद और नापसंद, भावनाओं, प्यार, जीवन, करियर, स्वास्थ्य आदि की सही और सटीक जानकारी राशि और जन्म-कुंडली से ही प्राप्त होती है। और इन्हीं आधारों पर राशिफल का निर्माण किया जाता है।

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